उन्हें ढून्ढने निकला था, जवानी के नशे में,
कभी इस शहर, कभी उस,
भटखता हुआ मंजिल के तलाश में, मिला न कोई हमसफ़र,
परेशां हुआ बार बार, थक गया, मुश्किलों से झून्ज्थे,
मधुशाला के आघोष में, पता न चला, कब बरसात, कब पतझड़,
मध्होशी के आलम में, कभी इस शहर, कभी उस,
नींद से जागा, पता चला, इस रात की सुबह नहीं,
हमसफ़र की तलाश में कभी इस शहर, कभी उस,
सोच सोच कर मन घबराया, सोच सोच में उम्र बीता,
होश आया तो अकेला पाया, पर जिद्द थी निरंथर खोज की,
ऊत्हेजना मन में, ढूँढने निकला ता, उस सौम्या की,
पता न चला, कब ग्रीष्म ऋतू, बरसात, शिशिर, और बसंत गुज़र गया,
अचानक यह हुआ, हमसाया से मोहब्बत हो गया,
चेहरे में मुस्कान ताने, हमसाया को अपनाया,
विवाद में निकला विवाहित जीवन, मिठास की चादर ओदे,
साल गुज़रे, यादें बनी, बहस हुई, आसू बहे, मन विचलित हुआ, फैसले हुए,
चला हु अब एक नए सफ़र में, मन की शांति ढूँढने,
कभी इस शहर, कभी उस !
Written and contributed by
Ramesh Narayanan
hidden talents coming out. nice Ramesh. i am pleasantly surprised :)
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